जाल में अपने खुद ही उसमे फंसता
आत्म पीड़ा पहुंचाता ।
दूसरो पर आरोपण करके
अपना अहंभाव बचाता ।
कोई दूसरा कहीं नहीं है
सब तेरा ही प्रक्षेपण है ।
जो सब तू सहन करता
वो तेरा ही पागलपन है ।
तुझे बयाँ करना नामुमकिन है
अधभुत तू मेरे मन है ।
आत्म पीड़ा पहुंचाता ।
दूसरो पर आरोपण करके
अपना अहंभाव बचाता ।
कोई दूसरा कहीं नहीं है
सब तेरा ही प्रक्षेपण है ।
जो सब तू सहन करता
वो तेरा ही पागलपन है ।
तुझे बयाँ करना नामुमकिन है
अधभुत तू मेरे मन है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें