तेरे खूबसूरत चेहरे का और प्रभात के पहरेका एक सा ही प्रभाव है दोनों के सानिध्य में शांत होता स्वभाव है । भोर की इस स्निग्ध वेला में उसी सौम्य रस का हो रहा स्त्राव है ।
दर्द से न जाने कैसी यारी है । तेरी हंसी के पीछे भी छिपा दिख जाता है । ये मेरी संवेदनशीलता है या अपना कोई पुराना नाता है समझ समझ के थक गया अभी तक समझ नही आता है शायद इसे ही इस जहाँ में प्यार कहा जाता है
जाल में अपने खुद ही उसमे फंसता आत्म पीड़ा पहुंचाता । दूसरो पर आरोपण करके अपना अहंभाव बचाता । कोई दूसरा कहीं नहीं है सब तेरा ही प्रक्षेपण है । जो सब तू सहन करता वो तेरा ही पागलपन है । तुझे बयाँ करना नामुमकिन है अधभुत तू मेरे मन है ।
तुम एक-दूसरे को प्रेम करना, लेकिन एक-दूसरे के मालिक मत बनना। तुम एक-दूसरे के पास होना, लेकिन बहुत पास नहीं।
तुम ऐसे ही होना, जैसे मंदिरों के खंभे होते हैं--एक ही छप्पर को सम्हालते हैं, लेकिन फिर भी दूर-दूर होते हैं।
अगर मंदिर के खंभे बहुत पास आ जाएं तो मंदिर गिर जाएगा। प्रेमी से भी थोड़े दूर होना, ताकि दोनों के बीच में स्वतंत्र आकाश हो। अगर बीच का स्वतंत्र आका
श बिलकुल ही खो जाए तो तुम एक-दूसरे के ऊपर अतिक्रमण बन जाओगे, आक्रमण बन जाओगे।
~~~~खलील जिब्रान ~~~~
कुछ आ रहा कुछ जा रहा । अनजान डगर पर मन गा रहा । अनजाने अपने हो रहे अपने अब सपने हो रहे शायद ये जगत है किन्ही और संबंधो का समय बीता अब सब अनुबंधो का । यात्रा ये अज्ञात की । बात है अब सब बिन बात की ।
आंसू हंसी प्रेम बरसात और तेरी वो मीठी बात कभी कभी का तेरा मेरा साथ सब स्वत : आता जाता जो भी स्वच्छंद आता जाता एक सुगंध सा मुझे महकाता वही हाँ वही परमात्मा का आभास लाता ।