शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

अब

जिन्दगी और है भी क्या 
समय काटने की तलब 
हर पल बेचैनी का सबब 
बीते कल की याद में 
आते कल की कल्पना में 
चूकता जाता हर पल अब

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

सौम्य रस

तेरे खूबसूरत चेहरे का 
और प्रभात के पहरेका 
एक सा ही प्रभाव है 
दोनों के सानिध्य में 
शांत होता स्वभाव है ।
भोर की इस स्निग्ध वेला में
उसी सौम्य रस का हो रहा
स्त्राव है ।

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

एक मुस्कान

एक मुस्कान ।
जो तुमसे मिली एक शाम
अब भी मुझे पुलकित किये है ।
कुछ ऐसा संग है तेरी खुसबू का
जो आज भी सुगन्धित किये है
कुछ ऐसा अहसास है तेरा
लफ्जो में बया होना मुश्किल है ।
तुमसे मिला तो जाना
मुझमे भी एक खूबसूरत दिल है
और नही कुछ कहना तुमसे ।
कभी मिलो तो बस मुस्कुरा देना ।
बस ये मुस्कान ही मुझे भर देने में काबिल है ।

निर्जन पथ

और बढ़ा , और बढ़ा दे ,मेरा डर 
निकल पडू जिस से मैं अपने निर्जन पथ पर

दर्द से यारी

दर्द से न जाने कैसी यारी है ।
तेरी हंसी के पीछे भी छिपा दिख जाता है ।
ये मेरी संवेदनशीलता है 
या अपना कोई पुराना नाता है
समझ समझ के थक गया 
अभी तक समझ नही आता है
शायद इसे ही इस जहाँ में प्यार कहा जाता है

अद्भुत मन

जाल में अपने खुद ही उसमे फंसता 
आत्म पीड़ा पहुंचाता ।
दूसरो पर आरोपण करके 
अपना अहंभाव बचाता ।
कोई दूसरा कहीं नहीं है 
सब तेरा ही प्रक्षेपण है ।
जो सब तू सहन करता
वो तेरा ही पागलपन है ।
तुझे बयाँ करना नामुमकिन है
अधभुत तू मेरे मन है ।

मेरी हंसी तेरी हंसी

सुना है तुम उदास हो चलो एक काम करते है
आज खुद को मस्त करने का इंतजाम करते है ।
तुम उदास हो तो मैं भी उदास रहू ये तो कोई बात
ना होगी
हिस्सा है गर मेरे मन का तू ,मेरी हंसी भी शायद
तेरी हंसी होगी ।

कविता पर अपना नाम

वो कहते है लिखा करो अपनी कविता पर अपना नाम 
मैंने कहा आप पर तो 
कहीं नही खुदा , खुदा का नाम ।
फिर मैं ही क्यों करू खुद को बदनाम ।

हवा से बात

अभी हवा से कर रहा था बात ।
पूछा कैसे है उनके हालात ।
हवा ने कहा छोडो उसकी बात 
अब तुम रहना मेरे साथ 
कह रही मेरे जैसे रहा करो 
कहीं न रुको बस बहा करो ।

चेतना

फैलाव होता जब चेतना का नहीं बंधती वो निज
बन्धनों मे,सम्बंधित होती वो पूर्ण जगत से अपनी पल्लवित
महक सुगंधो में ।

गहराई

सुनो खामोशियो लगा दो पहरा 
मुझे जाना है अनंत गहरा ।
अनदेखा अनजाना सफर है 
मेरे डूब जाने का भी डर है 
और कोई रास्ता भी नही
गहराई ही उन्हें आती नजर है ।

खामोश सुगंध

तुम खामोश हो , रहो खामोश 
यही खामोशी मुझे पसंद है ।
सभी फूल खामोश है ।
शायद इसीलिए उनमे सुगंध है ।

तेरा नाम

नहीं आरजू कुछ कहने सुनने की 
एक हलकी सी मुस्कान काफी है 
वो 
तेरे नाम पे आ ही जाती है ।

तेरी तस्वीर

पानी पे कुछ खिंची लकीर 
बनाने को तेरी तस्वीर 
इसके सिवा कोई कैनवास नही 

जहाँ हो मुकम्मिल तेरी तदबीर

मेरा अहसास तेरा अहसास

सुबह की ये ताजगी 
चुरा लो ।
प्रकृति रंग करा लो 
आने दो इसे अपने पास 
कुछ इस ताजगी सा ही है 
मेरा अहसास तेरा अहसास ।

अल्फाज

जाने  क्या  हुआ मेरे  अल्फाजो को
शर्माने  लगे  है  ये भी  अब उनके नाम  से
एक इनका ही तो सहारा  था
ये भी  गए  अब काम से  ...

प्रेम मंदिर

तुम एक-दूसरे को प्रेम करना, लेकिन एक-दूसरे के मालिक मत बनना। तुम एक-दूसरे के पास होना, लेकिन बहुत पास नहीं। तुम ऐसे ही होना, जैसे मंदिरों के खंभे होते हैं--एक ही छप्पर को सम्हालते हैं, लेकिन फिर भी दूर-दूर होते हैं। अगर मंदिर के खंभे बहुत पास आ जाएं तो मंदिर गिर जाएगा। प्रेमी से भी थोड़े दूर होना, ताकि दोनों के बीच में स्वतंत्र आकाश हो। अगर बीच का स्वतंत्र आका
श बिलकुल ही खो जाए तो तुम एक-दूसरे के ऊपर अतिक्रमण बन जाओगे, आक्रमण बन जाओगे। ~~~~खलील जिब्रान ~~~~

मुमुक्षा

विराट की अभीप्सा है 
अनंत प्रतीक्षा है ।
उफ़ 
कैसी मुमुक्षा है ।

यात्रा ये अज्ञात की

कुछ आ रहा कुछ जा रहा । 
अनजान डगर पर मन गा रहा ।
अनजाने अपने हो रहे 
अपने अब सपने हो रहे 
शायद ये जगत है किन्ही और संबंधो का 
समय बीता अब सब अनुबंधो का ।
यात्रा ये अज्ञात की ।
बात है अब सब बिन बात की ।

परमात्मा का आभास

आंसू हंसी प्रेम बरसात 
और तेरी वो मीठी बात 
कभी कभी का तेरा मेरा साथ 
सब स्वत : आता जाता 
जो भी स्वच्छंद आता जाता 
एक सुगंध सा मुझे महकाता
वही हाँ वही
परमात्मा का आभास लाता ।