सोमवार, 23 मई 2016

बुद्धत्व

मृत्यु तू मुझे और डरा जरा 
बिन तेरे मैं जीता हूँ मरा मरा 
तू सामने रहे आँखों के 
तो होगी जीने में कुछ बात 
अभी तो जीना है बस ऐसा 
जैसे समय रहे हो काट ।
जानता हू तू आती है आँखों में
सबकी
लेकिन समय बीत तब जाता है
समय रहते तू जगा दे ,
तभी कोई बुद्ध हो पाता है ।

सोमवार, 4 मई 2015

कुछ लिखू

कुछ लिखू तेरे बारे में ऐसा
किसी चाहने वाले न लिखा हो जैसा
लब तेरे मुस्कुराते रहे जिसे पढ़ने के बाद
हो कुछ ऐसा न फिर आये तुझे मेरी याद ।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

अब

जिन्दगी और है भी क्या 
समय काटने की तलब 
हर पल बेचैनी का सबब 
बीते कल की याद में 
आते कल की कल्पना में 
चूकता जाता हर पल अब

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

सौम्य रस

तेरे खूबसूरत चेहरे का 
और प्रभात के पहरेका 
एक सा ही प्रभाव है 
दोनों के सानिध्य में 
शांत होता स्वभाव है ।
भोर की इस स्निग्ध वेला में
उसी सौम्य रस का हो रहा
स्त्राव है ।

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

एक मुस्कान

एक मुस्कान ।
जो तुमसे मिली एक शाम
अब भी मुझे पुलकित किये है ।
कुछ ऐसा संग है तेरी खुसबू का
जो आज भी सुगन्धित किये है
कुछ ऐसा अहसास है तेरा
लफ्जो में बया होना मुश्किल है ।
तुमसे मिला तो जाना
मुझमे भी एक खूबसूरत दिल है
और नही कुछ कहना तुमसे ।
कभी मिलो तो बस मुस्कुरा देना ।
बस ये मुस्कान ही मुझे भर देने में काबिल है ।